पितृदोष निवारण के लिए सही अवसर है श्राद्ध पक्ष

हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। ‘श्रद्धा’ से ही श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है, जिसे संस्कृत श्लोक में भी इस तरह परिभाषित किया जाता हैं।  

‘श्रद्धया पितॄन् उद्दिश्य विधिना क्रियते यत्कर्म तत् श्राद्धम्’।
shraddhaya pitaarn udidishy vidhina kriyate yatkarm tat shraaddham.

श्राद्ध पक्ष 
श्राद्ध पक्ष के दौरान जो की आने वाली 17 सितम्बर से 02 अक्टूबर तक रहेगा, अगर आप इस दौरान  विधि विधान से श्राद्ध कार्य करते हैं, कुछ निषेध कार्यो का ध्यान रखते हैं और विशेष उपाय करते हैं तो आपकी जन्मकुंडली में पितृदोष का निवारण होता हैं। 
भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से पितरों का दिन प्रारम्भ हो जाता है, जो अश्विन अमावास्या तक रहता है। विभिन्न ग्रंथो में श्राद्ध के अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं जैसे – मत्स्यपुराण में 3 प्रकार के श्राद्ध – नित्यं, नैमित्तिक और काम्य बताए गए है, वही यमस्मृति में 5 प्रकार – नित्यं, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण और भविष्यपुराण और विश्वामित्र स्मृति में श्राद्ध के 12 प्रकार – नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठी, शुद्धर्थ, कर्माग, दैविक, यात्रार्थ, पुष्ट्यर्थ बताए गए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, वर्ष में 96 अवसर पर श्राद्ध करने का विधान हैं लेकिन आज के सन्दर्भ में यह सभी श्राद्ध करना संभव नहीं होता इसलिए उनमे से दो श्राद्ध करना अति आवश्यक होते हैं जिनमे पहला श्राद्ध वह होता हैं – जिस तिथि पर व्यक्ति की मृत्यु होती हैं जिसे पुण्य तिथि भी कहा जाता हैं और दूसरा पितृपक्ष में चंद्र तिथि में श्राद्ध करना। 

सामान्यतः श्राद्ध की दो प्रक्रिया होती हैं – पिण्डदान और ब्राह्मण भोज 

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श्राद्ध में त्याज्य

  1. तामसिक और मांसाहार भोजन व एक से अधिक बार भोजन न करे। 
  2. नशीले पदार्थो का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  3. नए वस्त्र, शॉपिंग, कोई नया काम आरम्भ और नए वाहन नहीं खरीदने चाहिए। 
  4. दातुन, मालिश और स्त्रीसम्भोग से दूर रहना चाहिए।  
  5. श्राद्धमें लोहे के पात्र का उपयोग कदापि नहीं करना चाहिये, न ही उसमे भोजन करना चाहिये तथा ब्राह्मण को भी इस पात्र में भोजन नहीं करवाना चाहिये। 
  6. श्राद्ध में त्याज्य पुष्प : कदम्ब, केवड़ा, मौलसिरी, बेलपत्र, करवीर, लाल तथा काले रंगके सभी फूल तथा उग्र गन्धवाले और गन्धरहित सभी फूल-ये श्राद्धमें वर्जित हैं।

पितृपक्ष के दौरान पितृदोष दूर करने के कुछ सरल ज्योतिष उपाय

  1. श्राद्ध पक्ष के दौरान सोमवार की सुबह शिव मंदिर में आक के 21 फूल, दही, बिल्‍वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें।
  2. घर की दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम दिशा खासतौर पर साफ़ और व्यवस्थित रखें और घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने पूर्वजों की तस्‍वीर लगाएं और उस पर इस दौरान माला चढ़ाए और घर से बाहर जाने से पहले उनका आशीर्वाद लेकर निकलें।
  3. पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल चढ़ाएं, इसके साथ ही पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल और काले तिल भी अर्पित करें। हाथ जोड़कर पूर्वजों से अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करें और उनसे आशीर्वाद मांगें।
  4. अपने पूर्वजों के निधन की तिथि पर जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्‍हें क्षमता के अनुसार दक्षिणा देकर विदा करें। भोजन में आपको अपने पूर्वजों के पसंद की चीजें स्‍वयं अपने हाथ से बनाकर परोसनी चाहिए और सम्‍मानपूर्वक खिलाना चाहिए।
  5. जिस व्‍यक्ति की कुंडली में पितृदोष हो व‍ह गाय का दान अथवा गोशाला में दान कर सकते हैं या गाय की सेवा कर सकते हैं। 
  6. पितृदोष दूर करने के लिए इस मन्त्र का जाप करे-

    ऊं सर्व पितृ देवताभ्‍यो नम:।
    ऊं प्रथम पितृ नारायणाय नम:।।
    Aum sarv pitr devataabhyo namh।
    Aum pratham pitr naaraayanaay namh।। 

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