धर्मशास्त्रों के अनुसार, मानव जीवन के चार दिव्य पुरुषार्थ—अर्थ (समृद्धि), धर्म (धर्मिता), काम (इच्छा) और मोक्ष (मुक्ति)—को सर्वोत्तम उद्देश्य माना गया है। जन्म-मृत्यु के 84 लाख चक्रों को पार करने के बाद, एक दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त होता है। इस शरीर के साथ, व्यक्ति प्रभु की भक्ति कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है, और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति पा सकता है। यह मुक्ति और अमरता पाने के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाला पर्व है ‘कुम्भ पर्व,’ जो प्राचीन काल से आयोजित होता आ रहा है। यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि सम्पूर्ण विश्व के एकता, मानवता और आस्था का प्रतीक है।
कहाँ लगेगा इस बार कुम्भ मेला
हर 12 साल में महाकुंभ का मेला आयोजित होता है, जो प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में बारी-बारी से होता है। इस बार महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में होगा।
“अश्वमेध सहस्त्राणि वाजपेय शतानि च।
लक्ष प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलं।।”
अर्थात, एक हजार अश्वमेध यज्ञ, एक सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख पृथ्वी की परिक्रमा करने का जो फल प्राप्त होता है, वही फल कुम्भ स्नान से प्राप्त होता है। प्रयागराज में 2025 में महाकुम्भ के आयोजन के अवसर पर गंगा, यमुना, और सरस्वती के पावन त्रिवेणी संगम पर असंख्य श्रद्धालु मोक्ष की डुबकी लगाएंगे। धार्मिक विश्वास के अनुसार, कुम्भ के अवसर पर श्रद्धापूर्वक स्नान करने वाले लोगों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भारतीय संस्कृति में जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी शुभाशुभ संस्कारों में कुम्भ (कलश) की स्थापना की जाती है, उसके बाद ही देव पूजा कर्म किए जाते हैं। कलश या घट एक प्रतीक है और ज्योतिष शास्त्र में यह बारह राशियों में से एक है। कुम्भ का आध्यात्मिक अर्थ है ज्ञान का संचय करना, क्योंकि ज्ञान प्रकाश से होता है, और कुम्भ स्नान, दर्शन और पूजन के माध्यम से आत्मा के तत्व का बोध होता है।
हमारे अंदर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अस्तित्व है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, “यत् पिण्डे, तत् ब्रह्माण्डे, तत् ब्रह्माण्डे, यत् पिण्डे” — अर्थात जो मानव पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में है, और जो ब्रह्माण्ड में है, वही मानव पिण्ड में है। कुम्भ, ‘घट’ का प्रतीक है, जो शरीर का प्रतीक है, जिसमें आत्मा का अमृत रस व्याप्त है। ऐसे प्रतीकों के माध्यम से, मानवता को भीतर जाकर चिंतन करने के लिए प्रेरित किया जाता है, जैसा कि संतों, देवताओं और शास्त्रों द्वारा सिखाया गया है।
ऐतिहासिक महत्त्व
कुम्भ पर्व का ऐतिहासिक संदर्भ अमृत कुम्भ से जुड़ा हुआ है, जिसे प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच प्रसिद्ध देवासुर संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में से अमृत कुम्भ सर्वोत्तम था। अमृत कुम्भ प्राप्त करते समय, धरती पर अमृत की कुछ बूँदें गिरीं, और जहाँ-जहाँ ये बूँदें गिरीं, वहाँ-वहाँ हर बारह वर्षों में कुम्भ का आयोजन होता है। हरिद्वार, उज्जैन, नासिक, और प्रयागराज वे स्थल हैं जहाँ अमृत की बूँदें गिरी थीं और ये स्थान कुम्भ मेला के आयोजन स्थल हैं।
महाकुंभ के आरंभ पर बन रहा है सिद्धि योग
2025 में महाकुंभ की शुरुआत पर सिद्धि योग बन रहा है, जो 28 जनवरी को रात 11:51 बजे से शुरू होकर 29 जनवरी को रात 09:21 बजे तक रहेगा। यह एक अत्यन्त शुभ समय माना जाता है, और इस समय किए गए कार्य सफल होने की संभावना होती है। सिद्धि योग में कुम्भ स्नान करने से श्रद्धालुओं को अपार पुण्य की प्राप्ति होगी।
इस प्रकार तय होती है महाकुंभ की तिथि और स्थान
महाकुंभ की तिथि और स्थान ज्योतिष में ग्रहों और राशियों की स्थिति के विश्लेषण के आधार पर निर्धारित की जाती है। कुंभ मेले की तिथि निर्धारण में सूर्य और बृहस्पति की स्थिति को विशेष महत्व दिया जाता है। कुंभ का स्थान निम्नलिखित है:
- प्रयागराज: जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब कुंभ का आयोजन प्रयागराज में होता है।
- हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तो हरिद्वार में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
- नासिक: जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक, महाराष्ट्र में कुंभ का मेला होता है।
- उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब उज्जैन में महाकुंभ का आयोजन होता है।
इस प्रकार ग्रहों की स्थिति के अनुसार महाकुंभ के स्थान और तिथि का निर्धारण होता है।
महाकुंभ शाही स्नान की तिथियाँ:
- 13 जनवरी – पौष पूर्णिमा
- 14 जनवरी – मकर संक्रांति
- 29 जनवरी – मौनी अमावस्या
- 3 फरवरी – बसंत पंचमी
- 12 फरवरी – माघी पूर्णिमा
- 26 फरवरी – महाशिवरात्रि