
हिन्दू सनातन परंपरा में कुछ तिथियाँ ऐसी मानी जाती हैं जो स्वयं में शुभता और पवित्रता का प्रतीक होती हैं — उन्हीं में से एक है अक्षय तृतीया। इस दिन को केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत शुभ माना गया है।
किसी भी दिन का शुभ समय जानने के लिए पंचांग का अध्ययन किया जाता है, जिसमें पाँच तत्वों — तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण — का विश्लेषण किया जाता है। यदि विशेष मुहूर्त देखना हो, तो पंचांग के साथ-साथ मास शुद्धि और लग्न शुद्धि का भी ध्यान रखा जाता है, ताकि सही और श्रेष्ठ मुहूर्त का निर्धारण किया जा सके, जो किसी कार्य को सफल और फलदायक बनाने में सहायक हो। लेकिन अक्षय तृतीया एक ऐसा दिव्य अवसर है, जब किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता ही नहीं होती। यह दिन स्वयं सिद्ध मुहूर्त या अबूझ मुहूर्त कहलाता है अर्थात् इस दिन किया गया हर शुभ कार्य स्वतः ही सफल और फलदायक माना जाता है। इसलिए, विवाह, गृहप्रवेश, खरीदारी, निवेश या कोई भी नया आरंभ अक्षय तृतीया के दिन करना विशेष रूप से शुभ होता है क्योंकि यह तिथि स्वयं में ही सौभाग्य का प्रतीक है।
अक्षय तृतीया का अर्थ और महत्व
“अक्षय” शब्द का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो, जो स्थायी और शाश्वत हो। यह दिन अपने नाम की तरह ही सद्भावना, दान, पुण्य और उन्नति का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन किया गया जप, यज्ञ, तर्पण, दान-पुण्य कभी समाप्त नहीं होता, उसका फल अनंतकाल तक बना रहता है, वहीं आज के समय में सम्पन्नता और समृद्धि का प्रतीक सोना-चांदी बन चुका है। इसलिए लोग अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदना शुभ मानते हैं।
ज्योतिषीय ग्रह घटना
2025 में अक्षय तृतीया बुधवार को आ रही है, और साथ ही रोहिणी नक्षत्र भी इस दिन उपस्थित रहेगा। ज्योतिष अनुसार यह संयोग अत्यंत शुभ होता है। ऐसा योग धन-संपदा, विवाह, नए कार्य की शुरुआत, तथा निवेश के लिए उत्तम फल देने वाला माना गया है। इसके अतिरिक्त इस दिन को “आखा तीज” के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष यह पावन पर्व बुधवार, 30 अप्रैल को मनाया जाएगा।
तिथि और मुहूर्त बुधवार, 30 अप्रैल 2025 पूजा मुहूर्त – 05:41 am से 12:18 pm सोना खरीदने का मुहूर्त – मंगलवार, 29 अप्रैल 05:31 pm से बुधवार, 30 अप्रैल 2:12 pm तक |
सोना खरीदने की परंपरा और लाभ
भारतवर्ष में अक्षय तृतीया के दिन सोना खरीदने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। मान्यता है कि इस दिन जो सोना खरीदा जाता है, वह कभी क्षीण नहीं होता उसमें निरंतर वृद्धि होती है, और यह घर में समृद्धि एवं लक्ष्मी का वास करता है। कई लोग इस दिन नए व्यापार, भवन निर्माण, वाहन खरीद, या निवेश की शुरुआत करते हैं। अगर आप देवी लक्ष्मी की कृपा के लिए सोना नहीं खरीद सकते हैं तो निराश होने की जरूरत नहीं है। कम खर्च में भी आप छोटे-छोटे ज्योतिष उपाए कर के घर में शुभता प्राप्त कर सकते हैं।
- मिट्टी का दीया : मिट्टी का महत्व सोने के बराबर है। यदि आप सोना नहीं खरीद सकते हैं, तो कोई भी मिट्टी का बर्तन या एक छोटा सा मिट्टी का दीपक खरीद सकते है।
- मौसमी फल : मौसम के रसीले फलों को भी आप खरीद कर पूजा में रख सकते हैं।
- सिक्का: अक्षय तृतीया पर 5 रुपए का सिक्का कपड़े में बांधकर अपने पूजा कक्ष में लक्ष्मी देवी के पास रखें।
- नमक : घर में सेंधा नमक रखें, लेकिन इस नमक का सेवन बिल्कुल न करें।
- पीली सरसों : पूजा में एक मुट्ठी पीली सरसों रखने से मां लक्ष्मी देवी की भरपूर कृपा प्राप्त होती है।
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क्या नहीं खरीदना चाहिए
- अक्षय तृतीया पर भूल से भी एल्युमिनियम, स्टील या प्लास्टिक के बर्तन नहीं खरीदने चाहिए।
- अगर आप अक्षय तृतीया पर कपड़े खरीद रहे हैं, तो इस दिन काले रंग के कपड़े न खरीदें।
- वहीं अक्षय तृतीया पर कांटेदार पेड़-पौधों घर न लाए।
पौराणिक महत्त्व और भगवान विष्णु की कृपा
यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है, पौराणिक कथाओं के अनुसार:
- त्रेतायुग की शुरुआत इसी दिन से मानी जाती है।
- भगवान परशुराम, जो विष्णु के छठे अवतार हैं, उनका जन्म भी इसी दिन हुआ था।
- इसी दिन युधिष्ठिर को कृष्णजी ने अक्षय पात्र दिया था, इस पात्र की यह विशेषता थी कि इसका भोजन कभी समाप्त नहीं होता था। इसी पात्र की सहायता से युधिष्ठिर अपने राज्य के भूखे और गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध कराते थे।
- महर्षि वेदव्यासजी ने महाभारत की कथा अक्षय तृतीया पर सुनाना आरंभ किया था और गणेशजी ने इस कथा को लिखना आरंभ किया था। इसी वजह से कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध भी अक्षय है जिसके कुछ उदाहरण आज भी कहीं-कहीं देखने को मिल जाते हैं।
- महाभारत में द्रौपदी के चीर हरण की घटना सर्वाधिक चर्चित मानी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उस दिन भी अक्षय तृतीया ही थी जब पांडवों ने कौरवों के साथ जुए के खेल में द्रौपदी को ही दांव पर लगा दिया था। दुशासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था, अक्षय तृतीया के दिन ही द्रौपदी की लाज बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षय चीर प्रदान किया था।
- नारद पुराण में बताया गया है कि अक्षय तृतीया के दिन ही गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। तेज बहाव के साथ स्वर्ग से निकली गंगा नदी को शिवजी ले अपनी जटाओं में धारण कर लिया था और फिर भगीरथ के प्रयासों से देवी गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं।
इसलिए यह दिन धर्म, नीति, और न्याय के मार्ग पर चलने का प्रतीक माना जाता है।
रजत सिंगल जी द्वारा वैदिक और ज्योतिषीय दृष्टिकोण
वैदिक ज्योतिष में अक्षय तृतीया को सभी दोषों से मुक्त दिन माना गया है। यह दिन उन तीन विशिष्ट तिथियों में से एक है जब:
- किसी भी शुभ कार्य हेतु मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं होती।
- विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ, शिक्षा प्रारंभ, भूमि पूजन, आदि सभी कार्य बिना मुहूर्त के किए जा सकते हैं।
इस दिन के कुछ मुख्य कार्य निम्न है :
- गंगा स्नान और दान करे।
- तुला दान, वस्त्र दान, अन्न दान करे।
- पितरों को तर्पण दे।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करे।
- नवीन वस्त्र, स्वर्ण, आभूषणों की खरीदारी करे।
- नया कार्य या व्यवसाय आरम्भ करे।
- विवाह जैसे मांगलिक कार्य करे।