सफल विवाह  के लिये गुण-मिलान ही काफी नहीं

जीवन में जिंदगी जीने के लिए बहुत सारी चीजों की जरूरत होती है मगर उन बहुत सारी जरूरतों की परिपूर्णता हेतु एक सुबोध, सहयोगी, विवेकशील जीवनसाथी होना भी जरूरी होता है।‌ शास्त्र अनुसार विवाह के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा होता है, जीवन में स्थिरता, सुंदरता, सुख-दुख में सहयोग के लिए व्यक्ति विवाह का मार्ग चुनता है। वैदिक संस्कृति के अनुसार जातक के जन्म से लेकर मरणोपरांत तक 16 संस्कारों का निर्वाह किया जाता है इन्हीं संस्कारों में से एक महत्वपूर्ण संस्कार “विवाह संस्कार” है जिसके साथ समाज की प्रथम इकाई अर्थात नए परिवार का प्रारंभ होता है । विवाह एक ऐसा विषय है जिसमें आप के साथ-साथ आपका पूरा परिवार सम्मिलित होता है तभी तो इसे अत्यंत सोच विचार कर बड़ी ही सावधानी से लिया जाता है।

विवाह में देरी आज के समय में वर और वधू के साथ-साथ समस्त परिवार के लिए भी बहुत बड़ी चिंता का कारण होता है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे कि कई बार व्यक्ति मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार ही नहीं होते है जिसके कारण विवाह में अकारण ही देरी हो जाती है। इसी के साथ-साथ और भी कई कारण हो सकते हैं जो आपने अपने जीवन में अनुभव किए होंगे जैसे की आपके मित्र या परिवार में वैवाहिक जीवन में मौजूद अस्थिरता, तनाव, कलह जिसके कारण आप ऐसे संबंधों में नहीं बंधना चाहते हैं, कई बार ऐसा भी होता है कि विवाह संबंध बनते-बनते बिगड़ जाते है जिसके कारण मन में विवाह के प्रति अवसाद उत्पन्न हो जाता है और आपके मन में शादी के प्रति नकारात्मक विचार प्रभावी हो जाते हैं। बहुधा माता-पिता अपनी संतान के लिए एक सर्वगुण संपन्न जीवनसाथी की कामना करते है, पर यह बात आप भी जानते हैं कि सभी में कुछ अवगुण स्वाभाविक होते है और सर्वगुण सम्पन्न जीवनसाथी की खोज में विवाह अनावश्यक देरी हो जाती है। 

इस लेख में हम जानेंगे कि व्यक्ति अविवाहित क्यों रह जाता है?

  1. मंगल और शुक्र नैसर्गिक रूप से पति-पत्नी के कारक हैं और गुरु धर्म, मुखिया, माता-पिता और गुरु है। यहां यह ध्यान रखें कि जब तक मंगल, शुक्र को गुरु कृपा न मिले विवाह सम्भव नहीं। अतः मंगल, शुक्र को गुरु की दृष्टि या युति भी प्राप्त हुई हो तभी विवाह होगा। 
  2. यदि सप्तमेश शनि से प्रभावित हो और तीसरे स्थान में हो तब व्यक्ति का विवाह लेट होता है।
  3. शुक्र का कर्क, सिंह राशि में होना, शनि दृष्ट होना, शुभ प्रभावहीन होना विवाह विलम्ब या अविवाहित योग बनाता है। 
  4. शुक्र कर्क में कमजोर होता है। ऐसे में कई मामलों में जातक के निजी जीवन की विसंगतियों के कारण जातक विवाह से डरता है।
  5. सिंह में शुक्र और भी पीड़ित होता है। यहाँ वैवाहिक सुख न के बराबर मिलता है। लेकिन गुरु के सम्बन्ध को देखे बिना शुक्र की इस स्थिति पर कुछ भी न कहें।

कोई भी योग अकेले बली नहीं होता जब तक अन्य दुर्गुण मजबूत न हों लेकिन कई बार इन योगों के बाद एक बात और है जो अविवाहित होने पर अपनी मुहर लगाती है। महादशा-अन्तर्दशा के बिना योग फल सम्भव ही नहीं। 

प्रत्यक्ष समस्याओं के अतिरिक्त कुछ अप्रत्यक्ष घटनाएँ, वस्तुएं, परिस्थितियां होती हैं जो कि इन परिस्थितियों को निर्मित करती है। जैसे आपकी कुंडली में उपस्थित विवाह दोष  जो आपके व्यावहारिक जीवन के सुख में कमी ले लाते हैं विवाह में विलंब का कारण बनते हैं तो चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ दोषों और उनके निवारण के बारे में।

  1. कुंडली में “मांगलिक दोष” अगर मंगल आपकी जन्म कुंडली में खराब अवस्था में उपस्थित है तो विवाह में विलंब तो होता ही है साथ ही व्यक्ति का विवाह 32 से 33 साल की उम्र से पहले होना संभव नहीं हो पाता। 
  1. विशेषत: मंगल और शुक्र शादी के लिए जिम्मेदार माने जाते है। आपकी राशि में शुक्र कमज़ोर होने के कारण शादी मे रुचि ख़त्म होती जाती है।
  1. शनि अगर कुंडली पर हावी हो तो विवाह में रुचि कम हो जाती है जिसके कारण ऐसे लोग जीवन के प्रति उदासीन हो जाते हैं धीरे-धीरे किसी का साथ पसंद नहीं आता, विवाह को टालते चले जाते हैं, बहाने बनाते हैं, तो यह  भी एक कारण है जब कोई व्यक्ति शादी नहीं करता। 
  1. “वास्तु दोष” भी विवाह न होने का एक मुख्य कारण है जैसे आपके घर का दक्षिण मुखी होना, घर के पास नीम का पेड़ होना, घर के पास बड़े-बड़े नाले हो और उसकी दुर्गंध संपूर्ण क्षेत्र में फैली हो, इन सभी कारणों से आपके घर में विवाह संबंधित समस्याएं बनी ही रहती हैं। परिवार के साथ वाद विवाद भी होते रहते हैं एवं कभी-कभी इन परिस्थिति के कारण विलंब  भी हो जाता है ।

अब हम दशा को समझें जहाँ भाव और ग्रहों का ही सम्बन्ध है ।

  1. महादशा स्वामी, नक्षत्र स्वामी मिलकर 6, 10, 8, 12 से जुड़ें तब विवाह मुश्किल से होगा ।
  2. यदि दशा स्वामी और नक्षत्र सम्बन्ध 4, 6, 10, 12 से जुड़े तब विवाह नहीं होगा।
  3. दशानाथ का सम्बन्ध 2, 4, 6, 12 भाव से बने तब ऊपरलिखित योगों का मिलान कर आपको पता चल जाएगा किसका विवाह होगा किसका नहीं?
  4. दूसरा भाव कुटुंब का है लेकिन इसे विरोधी भाव स्तर पर लिया गया है। इसके पीछे कुछ विशेष रहस्य है।

वैवाहिक जीवन में मिठास लाने के लिए हमेशा अपने जीवनसाथी के साथ समन्वय स्थापित करना पड़ता है, उनके व्यवहार को सझना पड़ता है। इसी व्यवहार को समझने हेतु विवाह से पूर्व कुंडली मिलाई जाती है। कुंडली के माध्यम से वर एवं वधू के स्वभाव एवं आचरण को पढ़ा जाता है। दुनिया मे सभी को मनचाहा, सर्वगुण संपन्न जीवनसाथी मिलने में समस्याएं तो उत्पन्न होती ही हैं परंतु कुंडली के माध्यम से आप उनके व्यक्तित्व-व्यवहार को पहले ही समझ कर कर अपने वैवाहिक जीवन में सामंजस्य स्थापित कर सकते हैं।

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